उड़ने को अब चला परिंदा

उड़ने को अब चला परिंदा,आसमान में पंख पसारे ।

पंखों पर है उसे भरोसा चुन लेगा सब नभ के तारे।

उमड़ घुमड़ कर गरज रहे हैं बड़े भयंकर बादल कारे।

खुश हो जाता था वो देख के काले बादल सारे ।

सोचता था वो अंधियारे में निकलेंगे सब नभ के तारे ।

सोचा उसने उड़ने से पहले,बुजुर्गों से कुछ तरकीबें विचारे ।

हैरान थे वो बुढ़े परिंदे देख नन्हें परिंदे के हौसले वो सारे।

मिसालें खूब दी उन सब ने कि ,” तारों के पीछे कितने वीर गए मारे ।

हौसले से नहीं पहुँच सकते वहाँ तक,क्या लोहे से मजबूत हैं पंख तुम्हारे ?

क्यों सोचते हो बकवास ये चीजें, जिस में इतनी तकलीफ है प्यारे ?

रातों में तो घोसलों के बगल में ही घूमते हैं ये जुगनु सारे।

वो भी तो रौशनी करते ही हैं,और मिल जाते बिन पंख पसारे।

आराम से घर बैठे ही इन जुगनुओं से सज जाएंगे घोसले ये सारे।

मूरख ही है वो लोग जो तारों के पीछे उमर गुजारें।

मानो हमारी बात तुम भी, मत जाओ तारों पे वारे।

कल ही सीख लो उल्लू से चुगने नन्हें जुगनु ये सारे।

अलग से ही होते हैं कुछ, जो पा लेते हैं नभ के तारे।

इतने छोटे पंखों वाले नहीं देखते सपनों में तारे।”

निराश परिंदा चला वहाँ से सोचता मन में बातें वो सारे।

अपने घोसले से देख रहा था वो आसमान में आ गये थे तारे।

तभी,इक चमकीली छड़ी सी गरजी और बरसने लगे मेघ वो सारे।

अचानक वहाँ आ गिरा एक परिंदा अपने पंख पसारे।

नन्हा परिंदा घर ला कर मरहम पट्टी कर उसे निहारे।

होश में आते ही परिंदा तारों की कहानियां बखारे।

नन्हे परिंदे ने पूछा, “क्यों करते हो ये सब,क्या रखा है तारों में प्यारे?”

परिंदे ने कहा,”उड़ना तो नियति है अपनी, तो उड़ने में कोई क्या जीते और हारे?

घोसलों में बैठने को नहीं बने हम,उड़ने को हैं ये पंख हमारे।

इन तारों को चुन कर लाएंगे, तो स्वर्ग बना देंगे घोसलों को सारे।

देखो ये नन्हे जुगनु जब छान लाते हैं तारों से ही रौशनी वो सारे।

तो इतने बड़े हो कर भी हम सब,क्यों बिन कोशिश के यूँ हिम्मत हारे?”

उड़ने को अब चला परिंदा,आसमान में पंख पसारे ।

उड़ना तो नियति है उसकी, तो उस में भला क्या वो हारे?

पंखों पर है उसे भरोसा चुन लेगा सब नभ के तारे।।

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