शिव शंकर है।

उन काले बादलों और गर्जन के बीच मानो वो करता नृत्य निरन्तर है ।

ये सारा ब्रम्हांड ही जैसे समाहित उसके अंदर है ।

ध्यान में रहना हरदम,चेहरे पे मुसकान निरन्तर है ।

योगी से परम योगी बनने की गाथा ही शिव शंकर है।

बिजली गरज रही धम धम ।

मेघ बरस रहे छम छम ।

धुल गया है प्रकृति का कण कण ।

धरती मानो हो रही जलमगन ।

देख प्रकृति का रूप ये भीषण ।

सहमा सा है सब जन जीवन ।

ढुढं कर आशियाँ कोई, छिपा हुआ है हर मन ।

चुपचाप बैठा है वो योगी, साधना उसकी बड़ी भयंकर है ।

योगी से परम योगी बनने की गाथा ही शिव शंकर है।

पत्थर फेंक रहें हैं सब ।

गाय के नाम पे हो रही हिंसा जब तब ।

वो उस खेमें से जुड़ गया है जब,

तो मैं भी चुप नहीं रहूँगा अब ।

कट रहे हैं लोग ,मर रहे हैं लोग ।

पर छोड़ो यार मेरा क्या ?

हो रही है हिंसा,फैल रहा है रोग ।

पर मैं तो खुश हूँ,मुझको क्या ?

पर कुछ तो हैं, जो औरों की खातिर मर रहें निरन्तर हैं ।

औरों की खातिर,जग के विष को पी जाना भी अति हितकर है ।

योगी से परम योगी बनने की गाथा ही शिव शंकर है।

 

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