ऐ खुशी तू ज़रा नाखुश क्यों है ?
क्यों लगे थोडी कम तू,बुझी बुझी क्यों है ?
जब छोटे थे हम तो तू लगती बडी थी ।
अब हम हैं बडे,पर कहाँ छिप गई तू यहीं तो खडी थी ।
वो पहले तू आती थी बिन कुछ बताए ।
अब न जाने तू क्यों घबराये ?
चहकती है तू उस बच्चे की अठ्ठनी में ।
अब मैं ढूंढता हूँ तूझे पैसों की खनखनी में ।
तूझे पाने को सारे जतन ये करूँ मैं ।
पा लूंगा तूझे फिर से, मन में हिम्मत भरू मैं ।
मुझे लगता है,उन लंबी गाडियों में कहीं है ।
कभी सोचता हूँ इन ऊँचे बंगलो में तो नही है ?
इस कागज़ के टुकडे मे दिखती नहीं है ।
बता दे तू मुझको, तू है या नहीं है ?
ये माथे पे चिंता,आँखों में नमी क्यों है ?
क्यों हैरा है मुझसे,ये बेरूखी क्यों है ?
ऐ खुशी तू ज़रा नाखुश क्यों है ?
क्यों लगे थोडी कम तू,बुझी बुझी क्यों है ?
बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति है
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